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Bhagavad gita slokas in sanskrit with meaning in hindi | Bhagavad gita quotes in sanskrit

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥



(अध्याय 2, श्लोक 20)

यह आत्मा किसी काल में भी न जन्मता है और न मरता है और न यह एक बार होकर फिर अभावरूप होने वाला है। यह आत्मा अजन्मा नित्य  शाश्वत और पुरातन है  शरीर के नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता।

श्री कृष्ण कहते हैं तेरा(मनुष्य) मूल स्वरुप आत्मा है, शरीर मात्र एक माध्यम, शरीर की मदद से इस संसार से हम संवाद (communicate) कर पाते हैं|

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥

(अठारहवां अध्याय, श्लोक 78)

जहाँ योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण हैं और जहाँ गाण्डीवधनुषधारी अर्जुन हैं? वहाँ ही श्री विजय विभूति और अचल नीति है ऐसा मेरा मत है।

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥

(अध्याय 2, श्लोक 22)

मनुष्य जैसे पुराने कपड़ों को छोड़कर दूसरे नये कपड़े धारण कर लेता है ऐसे ही देही (आत्मा) पुराने शरीरों को छोड़कर दूसरे नये शरीरों में चला जाता है।

यहाँ श्री कृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं, यह संसार परिवर्तन शील है, जीवन एक यात्रा है यहाँ लोग आते हैं चले जाते हैं, किसी भी वस्तु और व्यक्ति से आशक्ति (attachment) मत रख, बस जो जीवन में अभी हो रहा है उसको अनुभव कर और उस क्षण का आनंद ले|






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